Tuesday, 3 July 2018

छोटी छोटी बातें.

  • पता है दोस्तो मैंने कई बार लोगो को कहते हुए सुना है यार छोटी छोटी बातों पे गुस्सा हो जाते हो ।

    छोटी छोटी बातें ....


  • आसान होता है ना कहना छोटी छोटी बातें...लेकिन मेरे मन में हमेशा एक सवाल आता है क्या हर छोटी बात सच में उतनी छोटी है जितनी दिखती है ।


अगर हर छोटी बात छोटी होती है तो इस छोटी बात से बड़े बड़े रिश्ते क्यों टूट जाते है ।


मगर जानते है ऐसा क्यों होता है .....


क्योंकि बहुत बड़ा फर्क होता है छोटी छोटी बात और बड़ी बड़ी बतो में ....


  • बड़ी बड़ी बात ....

                    बड़ी बात हमेशा दो लोगो के बीच की होती है जब भी कभी कहीं बड़ी घटना घटती है तो वहां दो लोग होते है लेकिन घटना घटने के बाद में वहां दो नहीं बल्कि चार से भी ज्यादा लोग आ जाते है ..क्युकी बड़ी बातो का शोर इतना होता है वहां दो लोगो के बीच की लड़ाई कब दो परिवारों के बीच की लड़ाई और तो परिवार से कब दो कोमो के बीच की लड़ाई बन जाती है पता नहीं चलता ।बड़ी बड़ी  बातो का फर्क इसीलिए इतना गहरा नहीं होता क्युकी जब गुस्सा में आता इंसान और  झगड़ा शुरू करता तो चिक्ता है चिलाता है रोता है एक दूसरे पे आरोप लगता है ।खुद को हानि पहुंचता है या सामने वाले को हानि पहुंचाता है ...मार देता है या मर जाता है ।कुछ समय में जब  सब ऊर्जा खत्म हो जाती तो शांत हो जाता है ।कुछ समय में भूल जाता है ।और सिर्फ बाते रह जाती है कांड रह जाते है ।


मगर इसे ठीक विपरीत ...

बात आती है इससे विपरीत क्या होता है क्यों छोटी छोटी बातें जरूरी है ....



  • छोटी छोटी बातें ....

                              छोटी छोटी बातों  को ना समझने का सबसे बड़ा कारण होता है  दो लोगो का खास रिश्ता ।कोई भी रिश्ता है चाहे वो दोस्ती का है या प्यार का है या अपने पन का ..उसमें पहली बात तो यही होती है  कोई रिश्ता खास तब बनता है जब उसमें विश्वास हो । विश्वास किसी भी इंसान पर कोई जब करता है तब उनकी थोड़े बहुत विचार मिलते हो और सामने वाला ईमानदार हो ।अगर किसी भी रिश्ते में ये सारी बाते है समझ है विश्वास है फिर  क्यों वो लोग अलग हो जाते है ...इसका एक कारण है छोटी छोटी बातें...और छोटी छोटी बातें हमेशा दो लोगो के बीच होती है तीसरा इसमें शामिल नहीं होता यह खेल भावना और इच्छा और लगाव का है।

क्योंकि विश्वास ईमानदार और   लगाव है,..तो जाहिर सी बात ये है वहां कुछ ना कुछ एहसास भी होगा ।

और हर छोटी बात हमारे एहसास से जुड़ी होती है ..जब कोई इंसान किसी सामने बाले इंसान को बोल नहीं पा रहा ..लेकिन वो अन्दर से घुट रहा है ..सामने वाला उसकी समझ नहीं पाता है ।और एक बोल नहीं पता ..यही एक कारण है ..जब दोनों में से एक को एहसास होता है ..इसको फर्क नहीं पड़ता मेरी तकलीफ से तो मुझे क्यों पड़े ..और उसका  व्यवहार वहीं से बदल जाता है ।और जब इसका एहसास दूसरे इंसान को होने लगता है तो दोनों के बीच अजीब सी  चुपी छा जाती है ..जिससे वो पास होकर पास नहीं..और साथ होकर साथ नहीं ।और जब एहसास और विश्वास दोनों खत्म होने लगते है तो ..इंसान को अपने आप ही हर बात पर गुस्सा करने और चिलाने लगता है ..और उसका  व्यवहार ऐसा हो जाता जैसे उसको फर्क नहीं पड़ रहा ..ऐसा व्यवहार करने लगता है ।और अंत में दोनों के  एहसासों के कातल हो  जाता है..या यूं कहे एहसास मार दिए जाते है ।



इसका अन्त एक एक होता है एक दूसरे को दोष देना तुम छोटी छोटी बातो को बड़ा बना देते हो ...और दूसरी तरफ से तुम मुझे समझते ही नहीं हो ।तुमने मुझे जाना ही नहीं ।



  • आप ही बताओ गलती किसकी थी ...? 




धन्यवाद्

                 

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