Sunday, 16 September 2018

ग़ज़ल

आसमा छू के आने की जिद है मुझे
धूप है या घटा है ,मुझे क्या पता
आसमा...

मुझे अपनी उड़ानों से है वास्ता
किस तरफ की हवा है ,मुझे क्या पता।
आसमां छू...

है ताल्लुक टूटा तो टूटा रहे
मुझसे रूठा है कोई, तो रूठा रहे
इन दिनों तो में खुद से भी नाराज हूं
कौन मुझसे खफा है, मुझे क्या पता।।
आसमां छू...

मुझ को मेहबूब है आप की हर अदा
बेवफ़ाई है क्या और क्या है वफा
जो भी समझाइए गा समझ लूंगी मैं
आपके दिल में  क्या है मुझे क्या पता ।।
आसमां छू...

तू मेरा रंग है तू मेरा रूप है
तू मेरी छाओ है मेरी धूप है,
तू जहां मिल गया, में वहीं रुक गई
घर है या रास्ता है, मुझे क्या पता ।।
आसमां छू...

ख्वाहिशें भी नहीं हसरतें भी नहीं
आरजू भी नहीं  जुस्तजू भी नहीं
ये जो दिल मेरे पहलू में आबाद है
किस मर्ज की दवा है, मुझे क्या पता
आसमां छू..

मुझसे मिलकर बो अल्जुम कहां खो गया
लोग कहने लगे बेवफा हो गया
धूड़ती फिर रही हूं में जिसका पता,
वो कहां लापता है, मुझे क्या पता
आसमां छू...

                         @अंजूम

No comments:

Post a Comment

POEMS THAT I LIKE MOST

ज़िन्दगी एक पल की ।

कभी दोस्त तो कभी दुश्मन नजर आती है ज़िन्दगी...। हर रोज एक नई आस जगाती है जिंदगी..।। जिंदगी कभी प्रीतम के प्यार में ... कभ...