Monday, 26 August 2024

misunderstanding ( गलतफैमी )

जैसा की हम सब जानते हैं , इंसान कितना भी समझदार क्यों न हो जाये वो एक न एक जगह पे मूर्खता करता ही है।  यहाँ इसा  शायद ही कोई  होगा जिसने आजतक जान के या अनजाने में कोई मूर्खता न की हो। हम सब के जीवन में एक न एक टाइम पे हम लोग दो रहे पर आजाते है यहाँ हमे पता नहीं होता क्या करना सही है और क्या करना गलत है इसीलिए हम वो फैसला करते हैं वो हमे सही लगता है। . परन्तु हम सामने वाले का भूल जाते है उसको कैसे ये बात कैसे लगी होगी देखिए बात सिर्फ इतनी सी की जो हमे सही लगता है हो सकता है वो सामने वाले को ठीक न लगे।  जो सामने वाले को ठीक लगता जरुरी नहीं वो आप को ठीक लगे।  जहाँ समझ नहीं मिल पति परेशानी स्टार्ट हो जाती है एक समझा नहीं पता और एक समझ नहीं पता। ऐसे में  गुसा और तनाब और मनमोतब जैसे परेशानी देखने को मिलती है।  कभी आपने गौर किया है इसका सही कारण क्या होगा  ? क्या हो सकता है ? 
शायद आप का जवाब न में हो क्युकी हम लोग इतना सोचते ही कब हैं। जब सोचते नहीं नहीं समझ भी नहीं पाते  जब समझ ही आया तो उस चीज़ की क्या कीमत सिर्फ ज़ेरो सब कुछ जीरो। 
सब कुछ जीरो कर देने के बाद अपने आप को हीरो कहना वो एक मुर्ख की निशानी होती हैं।
 लेकिन कर भी क्या सकते हैं लोह है ही इतने समझदार आजकल के उसको समझने बैठो वो खुद आप को समझा के चले जायेंगे।किसी की बात को ध्यान  से न सुना  उसको आधी बात को समझ के ही ज्ञान देना स्टार्ट कर देना भी एक तरह की मूर्खता ही होती है।ऐसी बहुत सी बातें  हैं तो चलिए देखते है कुछ विस्तार में....... 

देखिये कुछ  कारण और ओके पीछे का सच ........ 

  1. किसी की बात को ध्यान से  न सुनना। 
  2. बिना बात को समझे  अपनी राय  कायम करना। 
  3. बिना तर्क के  किसी  की बात पे यकीन कर लेना।
  4. खुद को ज्यादा होशियार सावित करने की कोशिश  करना। 
  5. जब कोई प्रेम दिखये तो  उसको उसकी  मज़बूरी समझना। 
  6. खुद को नहीं समझ पाना। 
  7. चीज़ों को एक्सेप्ट नहीं करना।
  8. किसी की एक गलती को बार बार दोहराना। 
  9. गुस्से  में रहकर  चीज़े को सुझाने की कोशिस करना। 
  10. समय से ज्यादा समय लेना , वक्त पे किसी काम अंजाम  नहीं  देना।
तो जैसा आपने पड़ा ये कुछ कारण हैं जिसपर आपने शायद कभी विचार करने की कोशिस नही की हो परन्तु ये घटना सब के जीवन में घटती हैं।  कैसे चलिए इसपर विचार करते है. ...... 
  1. किसी की बातों को  ध्यान से सुनना 
देखिये  पहले तो ये समझते है किसी की बातों को ध्यान सुनना क्यों जरुरी है। वो इसीलिए जरूरी है क्युकी हम किसी को समझना चाहते है।  किसी को समझने के लिए उसको सुनना जरुरी होता है।  क्युकी सुनने से ही इंसान को जानने का मौका मिलता है। और जानने से ही समझने का। और समझने से ही पसंद करने का।  जहाँ बात पसंद की आजाती है वाहन चीज़े सही और गलत नहीं रहती। क्युकी समझने से  उसकपे तर्क करने की क्षमता बड़  जाती हैं  और तर्क से विश्वास करने की क्षमता बढ़ती हैं। और जैसे हम जानते हैं जहाँ हमे विश्वाश होता वहां किसी गलतफैमी का होना इतना आसान नहीं  होता क्युकी यहाँ  बात विश्वास की.यहाँ  इन्शान किसी रिश्ते से नहीं बल्कि सोच ,समझ ,और विश्वास से जुड़ा हैं ।  यहाँ किसी प्रकार की गलतफैमी का होना मुश्किल होता हैं। समझने की कोशिस कीजिये दोस्तों .. 
सुनने से सोच बढ़ती हैं। सोच से समझ  बढ़ती हैं। और समझ से तर्क। और  तर्क से  विश्वास और  पसंद। 
तो आप समझ पाए होंगे किसी को ध्यान से सुनना क्यों जरुरी होता हैं। 

2 . किसी की बात को बिना समझें  अपनी राय  कायम करना 
जैसा की हमने समझा सुनने की वैल्यू क्या होती ठीक उसी तरह एक राय  जो इंसान खुद ही कायम कर लेता हैं  बिना समझे कितना  ख़तरनाक़  हो सकती हैं। राय जो अपनी बनाई किसी चीज़ क लिए वो सिर्फ हम से ही जुडी होती हैं। क्युकी  सोचते हैं वो हमारे अनुशार होता हैं। मान लो जो हमारे अनुशार हैं उसमे किसी का अच्छा और  रूप नहीं हैं। माना हमारी सोच सामने  गए कार्य  अनुशार बानी परन्तु  तर्क के और बिना  किसी समाज के कभी कभी हमारी समझ सिर्फ हमारे अनुशार नहीं होती हैं। कभी कभी  हम ये मान लेते है हमारी सोच का कारण यह हैं परतु वो कारण होता हैं। हमारी राय किसी भी कार्य और घटना का परिणाम  ठीक 






















Wednesday, 8 April 2020

शायरी

कौन थे तुम आज ये सवाल सता रहा है
एक कोई डर है अन्दर जो मुझे खाए जा रहा है
तेरी मौजूदगी से कोई शहारा तोह नहीं था
फिर क्यों तेरे न होने से मेरा दिल बैठा जा रहा है ।।

ज़िंदगी का मेरी यह हाल कर दिया
तूने
बिन कुछ कहे कमाल कर दिया।।

गुजरता नहीं एक पल
हर पल में नमी सी रहती है
यूं तो दिखता है मेरा हर पल खुशनुमा
मगर दिखने और होने में कुछ कमी सी होती है ।।


अब मेरी खामोशी भी इस क़दर ख़ामोश सी  होने लगी
मानो अपने सासों के शोर से भी छुप जाना चाहती है ।।



Wednesday, 16 January 2019

दर्द छुपाएं रखे हैं ।

कुछ दर्द छुपाए रखे हैं, कुछ गम बचाए रखें है

दर्द का समन्दर है मन में,आंसू आंखों में छुपाए रखे है।।


ईश्वर की खबर है मुझे, मंदिर का भी है पता 

खुद की मैं खुद नहीं, तो इबादत करू रब की क्या।।


यह जो दर्द है मन में मेरे,इसे सब की नज़रों से बचाए रखना

इस शीशे से मन को मैंने,  पत्थरो से बचाए रखा ।।


ए -मेरे मालिक मेरी दुआ है तुझसे, मुझे यूं ही मजबूत बनाए रखना 

टूटकर मेरे ख्वाब हो जाएं चूर-चूर, मगर विश्वास मेरे अपनों का बनाए रखना।।


ना रूठे मुझसे कोई कभी,मुझे इस काबिल बनाए रखना 

मेरे इस छोटे से दिल की है इच्छा यही,प्यार मेरा यूहीं सब में बनाए रखना ।।


नहीं परवाह मुझे मेरी, चाहे रहे हर ख्वाहिश अधूरी मेरी 

बस भर सकूं मैं जख्म किसी के, मुझे ऐसा मरहम बनाए रखना ।।


अगर टूटने लगु में कभी, भिखरने लगे अगर ख्वाहिशे मेरी 

मेरे मालिक तू ना रूठना मुझसे कभी, ना छोड़ना मेरा साथ कभी ।।


तू ही मालिक है तू ही मौला मेरा, तेरे सिवा मेरा ना जहान में कोई 

में हूं सिर्फ रुबरू तुझे, बाकि खाली है ज़िन्दगी मेरी ।।


गम सेह लूंगी, तन्हा रेह लूंगी ..है मंजूर मुझे हर रजा तेरी 

ठोकर भी देना, सीख भी देना ..ना तोड़ना मेरा विश्वास कभी ।।

#दीक्षा 

Sunday, 16 September 2018

ग़ज़ल

आसमा छू के आने की जिद है मुझे
धूप है या घटा है ,मुझे क्या पता
आसमा...

मुझे अपनी उड़ानों से है वास्ता
किस तरफ की हवा है ,मुझे क्या पता।
आसमां छू...

है ताल्लुक टूटा तो टूटा रहे
मुझसे रूठा है कोई, तो रूठा रहे
इन दिनों तो में खुद से भी नाराज हूं
कौन मुझसे खफा है, मुझे क्या पता।।
आसमां छू...

मुझ को मेहबूब है आप की हर अदा
बेवफ़ाई है क्या और क्या है वफा
जो भी समझाइए गा समझ लूंगी मैं
आपके दिल में  क्या है मुझे क्या पता ।।
आसमां छू...

तू मेरा रंग है तू मेरा रूप है
तू मेरी छाओ है मेरी धूप है,
तू जहां मिल गया, में वहीं रुक गई
घर है या रास्ता है, मुझे क्या पता ।।
आसमां छू...

ख्वाहिशें भी नहीं हसरतें भी नहीं
आरजू भी नहीं  जुस्तजू भी नहीं
ये जो दिल मेरे पहलू में आबाद है
किस मर्ज की दवा है, मुझे क्या पता
आसमां छू..

मुझसे मिलकर बो अल्जुम कहां खो गया
लोग कहने लगे बेवफा हो गया
धूड़ती फिर रही हूं में जिसका पता,
वो कहां लापता है, मुझे क्या पता
आसमां छू...

                         @अंजूम

Thursday, 13 September 2018

शायरी

अपनी बातों पे खुद गौर कर ले

और सोचे, ये क्या कह रहे है

पहले अपने गरेवा में झाके

जो हमे बेवफा कह रहे है ।।


दिल जो टूटा तो कुछ गम नहीं है

तुमको पहचाना ये कम नहीं है 

तुम जिसे जीत कहते हो अपनी

हम उससे ताजुरवा केह रहे है ।।


ज़िन्दगी से बहुत दुरिया है

ज़िंदा रहना भी मजबूरियां है 

उनके हालत भी कोई देखे

ज़हर को जो दवा कह रहे है ।।

                                @अंजुम

Sunday, 2 September 2018

अभिलाषा


मैंने जाना है एक इंसान को उसकी सोच महान को.. कार्य उसके न्यारे है, चारों तरफ फैले उजियारे है । अंधेरा ना भटक पायेगा कभी उसके आसपास ..उसकी हंसी के गीत तो इतने प्यारे  है। ।


यूं तो छोटा सा यह जहान है.. लेकिन इस जहान में भी एक जान है, जिसकी सोच महान है। यूं तो जाना मैंने उसे कुछ ज्यादा नहीं... इसीलिए सही और गलत कहने का भी कोई इरादा नहीं।।


जाना बस इतना ,सोच उसकी न्यारी है .. आशा इतनी ,सबके मन में उसकी छवि प्यारी हो। बढ़ाएं कदम वो जिस डगर पर ..फूल बिछे मिले उसे पग-पग पर।।


उसकी हर डगर सुहानी रहें , दुनिया उसकी दीवानी रहें । उसकी हर शाम नूरानी रहें उसकी हर बात रूहानी रहें  ... कार्य करे वह जिस पथ पर ,उसकी अमर कार्यों की कहानी रहें ।।


भिखेरे नूर खुदा हर पल में ..उसका जीवन नूरानी रहें । मेरी आशा की भी अभिलाषा यही.. अमर मेरे शब्दों की बानी रहें ।।


कुबूल करें इसे खुदा भी , ईश्वर की भी मिले रजा.. लिखा मिटे भले ..ना मिटे एहसास की सदा .. शब्द शब्द जुड़े एहसासों से ..हकीकत शब्दों की कहानी रहे।।।


उसका जीवन नूरानी रहें  , उसकी सोच रूहानी रहें।

अमर उसके कार्यों की कहानी रहे ..दुनिया उसकी दीवानी रहे ।।

                           



परिभाषा

अज्ञेय कहूं तुझे ज़िन्दगी, या कहूं अद्वितीय

अज्ञ कहूं ,या फिर कहूं अनिवार्य 

में तो हूं अल्पज्ञ ज़िन्दगी ,भला तेरा अथाय कैसे पहचान सकु 

लाईलाज है तू , तू ही है अनंत 

में तो हूं जिज्ञासु , और तू है दुर्गम 

नहीं हूं में सर्वज्ञ ,नहीं कोई परोक्ष की परिभाषा कहीं हस्तलिखित ।।

POEMS THAT I LIKE MOST

ज़िन्दगी एक पल की ।

कभी दोस्त तो कभी दुश्मन नजर आती है ज़िन्दगी...। हर रोज एक नई आस जगाती है जिंदगी..।। जिंदगी कभी प्रीतम के प्यार में ... कभ...