Sunday, 2 September 2018

परिभाषा

अज्ञेय कहूं तुझे ज़िन्दगी, या कहूं अद्वितीय

अज्ञ कहूं ,या फिर कहूं अनिवार्य 

में तो हूं अल्पज्ञ ज़िन्दगी ,भला तेरा अथाय कैसे पहचान सकु 

लाईलाज है तू , तू ही है अनंत 

में तो हूं जिज्ञासु , और तू है दुर्गम 

नहीं हूं में सर्वज्ञ ,नहीं कोई परोक्ष की परिभाषा कहीं हस्तलिखित ।।

No comments:

Post a Comment

POEMS THAT I LIKE MOST

ज़िन्दगी एक पल की ।

कभी दोस्त तो कभी दुश्मन नजर आती है ज़िन्दगी...। हर रोज एक नई आस जगाती है जिंदगी..।। जिंदगी कभी प्रीतम के प्यार में ... कभ...